पत्रिकाओं में प्रकाशित आलेखों की सूची - लाल्टू
पूरी सूची बना पाना मुश्किल है। बिल्कुल पहले की कुछ रचनाओं का ब्यौरा है, बाद की भी रचनाएँ मिल जाएँगी, पर बीच के दशकों की मिलना मुश्किल है। धीरे-धीरे पूरा कर रहा हूँ - कुछ पंजाबी और बांग्ला रचनाएँ भी यहाँ शामिल हैं।
पत्रिका |
प्रकाशन काल |
शीर्षक |
अक्स (पंजाबी में) |
अगस्त 1998 |
ਗੋਇਬਲੀਕਰਣ ਦੇ ਖਿਲਾਫ ਆਵਾਜ਼ ਉਠਾਓ |
अकार |
68-अक्तूबर 2024 |
फताड़ू के नवारुण |
67-जुलाई 2024 |
मृत्युनाद |
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अगस्त-नवंबर 2015 |
साक्षात्कार की दो किताबों की समीक्षा - 1. अदब से मुठभेड़, 2. ... |
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अप्रैल-जुलाई 2015 |
पिछली सदियों में भारत में शिक्षा और विज्ञान-शिक्षा पर कुछ बातें |
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अगस्त-नवंबर '14 |
नन्दकिशोर आचार्य का साक्षात्कार |
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अजीत समाचार |
02.02.97 |
तरसेम गुजराल के कहानी संग्रह 'सीढ़ियाँ और शिखर' की समीक्षा |
अनहद |
2018 |
उत्थिष्ठ उत्थिष्ठ मूढ़मति उत्थिष्ठ |
मार्च 2017 |
मुक्तिबोध की रचनाओं में वैज्ञानिक सोच |
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अनुनाद–ई-ज़ीन |
14.12.09 |
मैगज़ीन: कविता की अपनी बौद्धिक दुनिया है |
अमर उजाला
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19.12.01 |
ज़मीनी मुद्दों के बिना चुनाव |
16.01.00 |
(मैगज़ीन) अशिक्षा के माहौल ने विज्ञान आंदोलन की भी कमर तोड़ी |
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अंग चम्पा |
जनवरी-सितंबर-2016 |
इश्क पर जासूसी का ठेका |
आजकल |
फरवरी 2012 |
भगत सिंह की विरासत का चमकता सितारा (गुरशरण सिंह) |
इतवारी पत्रिका |
30 मार्च 1997 |
कुमार विकल: शाश्वत मानदंड की कविता |
उत्तरार्द्ध |
अगस्त 1989 |
विज्ञान और सांप्रदायिकता |
उद्भावना |
2022 |
आज़ादी के बाद 75 साल : तालीम हाल-बेहाल |
2020 |
बाग़ बाग़ शाहीन बाग़ |
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सितंबर 2019 |
भाषा की लड़ाई |
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मई 2019 |
विष्णु खरे विशेषांक में : अक्खड़पन के बावजूद |
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मई 2018 |
झूठ, और झूठ – खतरा और भी है |
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2018 |
सर विदिया नायपाल का जाना |
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मार्च-अगस्त 2017 |
असगर वजाहत को पढ़ते हुए |
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2016 |
राष्ट्र, देश आदि और भारत के लोग |
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मार्च-जून 2015 |
जसम सभा के लिए व्याख्यान |
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जुलाई 2012 |
थोड़ा सा चाँद, थोड़ी सी गप्प (शमशेर बहादुर सिंह पर) |
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कथा |
अक्तूबर 2014 |
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गर्भनाल |
अगस्त 2015 से : समकालीन जनमत में मार्च से नवंबर 2012 तक आए विज्ञान लेखों (नीचे देखिए) का पुनर्प्रकाशन |
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जुलाई 2015 |
आई आई टी - एम कांड को कैसे देखें |
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जून 2015 |
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मई 2015 |
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छत्तीसगढ़ खबर |
27.04.14 |
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जनचौक (वेबज़ीन) |
मई 2019 |
23 मई आ गई, अब आगे क्या? |
जनज्वार (वेबज़ीन) |
अप्रैल 2019 |
मुसोलिनी प्रेरित संघ को लोकतंत्र से क्या लेना-देना |
जनपथ (वेबज़ीन) |
अप्रैल 2012 |
सांप्रदायिक माहौल में चुनावी हार-जीत का मतलब: संदर्भ पश्चिम बंगाल |
जनसत्ता |
30.07.15 |
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23.07.15 |
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12.06.15 |
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15.03.15 |
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01.03.15 |
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16.02.15 |
भाषाई मानवाधिकार का मसला (मूल - भाषा का मुद्दा आखिर क्या है) |
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16.01.15 |
अधकचरी समझ का विज्ञान (मूल - यह जंग है, इस जंग में ताक़त लगाइए) |
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21.11.14 |
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29.10.14 |
समान शिक्षा के लिए संघर्ष |
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25.09.14 |
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03.06.14 |
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24.05.14 |
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14.05.14 |
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27.04.14 |
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10.04.14 |
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02.04.14 |
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23.01.14 |
वाम के समक्ष चुनौतियाँ (ब्लॉग लिंक) |
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07.12.13 |
अलविदा मांडेला - हम भूलेंगे नहीं 'अमांडला अंवेतू' (ब्लॉग लिंक) |
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15.01.13 |
माँ को बच्चों से जुदा करने के खिलाफ (मूल) |
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16.05.12 |
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02.04.12 |
प्रचार का आवरण |
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02.10.11 |
प्रतिरोध की मशाल (गुरशरण सिंह) |
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23.09.09 |
पंखा चलता तो शहतीर काँपती |
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29.04.02 |
जंग के लिए ना |
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19.04.02 |
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-.10.01 |
पुस्तक समीक्षा: पैट्रीसिया कीनी की कविताएँ |
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01.03.93 |
जन विज्ञान आंदोलन के समाजशास्त्र की ज़रूरत-1 |
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16.03.93 |
जन विज्ञान आंदोलन के समाजशास्त्र की ज़रूरत-2 |
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20.11.90 |
संप्रेषण-महाजाल का नया युग |
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30.10.90 |
दिल का दर्द |
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19.02.90 |
जहाँ भी सुनते हैं शोर ही शोर |
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16.02.90 |
नशीले पदार्थों से परेशान क्यों है अमेरिका |
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05.02.90 |
रंगभेद के नाश की आखिरी घड़ी |
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26.01.90 |
अमेरिकी विध्वंस के विरुद्ध अब कई हाथ उठे |
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16.01.90 |
काले शोषितों को उबारा लूथर किंग ने |
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10.01.90 |
सीखो दोस्तो सीखो बुनियाद से |
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04.01.90 |
विज्ञान नीति खोखले नारों पर आधारित न हो |
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01.01.90 |
दादागीरी महँगी पड़ सकती है अमेरिका को |
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30.11.89 |
विवाद उपन्यास की शैली या स्तर का नहीं |
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द वायर |
नवंबर 2019 |
कुलदीप कुमार के कविता संग्रह 'बिन जिया जीवन' की समीक्षा |
अप्रैल 2019 |
अगली सरकार संघी क्यों नहीं |
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दैनिक भास्कर |
24.01.16 |
रोहित वेमुला |
18.10.15 |
ज़ुबां अब तक तेरी है (मूल: नफ़रत की संस्कृति का विरोध ज़िंदगी की पहचान है) |
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13.09.15 |
हम परचम बुलंद रखेंगे |
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03.05.15 |
वे हमारे गीत रोकना चाहते हैं |
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15.2.15 |
रुश्दी का भाषाई घमंड (मूल – भाषा की लड़ाई) |
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25.2.15 |
अदना पर असाधारण इंसान |
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29.10.05 |
तेरे दामन से जो आएँ उन हवाओं को सलाम (काश्मीर भूकंप) |
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12.09.05 |
शिक्षा क्षेत्र की समस्याओं के प्रति सतही सोच |
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02.08.05 |
कोई नहीं चाहता विनाश का तांडव देखना (हिरोशिमा दिवस) |
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07.06.05 |
पूछने वालों की सूची में क्यों नहीं आपका नाम! |
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26.04.05 |
कानफोड़ू सोर में गुम प्रकृति का संगीत |
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20.10.03 |
(खास चिट्ठी) साइंस कॉंग्रेस में मिसाइलें तैनात करने के खिलाफ |
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18.10.03 |
इसलिए ग़लत है हड़ताल पर रोक |
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08.10.03 |
रुढ़ियों के खिलाफ एक बुलंद आवाज़ (यशपाल) |
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15.04.03 |
प्रेम पर पहरा क्यों (यूथ प्लस में) |
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09.04.03 |
हम रचते क्यों हैं - क्योंकि हम प्यार करते हैं |
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16.12.02 |
यह हमारे समय की राजनीति है (गुजरात चुनाव) |
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अगस्त '02 |
हिरोशिमा की सीख |
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13.05.02 |
अनेकानेक सिद्धू और एक छोटी सी लड़ाई (भ्रष्टाचार पर) |
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05.03.02 |
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस और गोधरा कांड |
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-.-.02 |
चंडीगढ़ में खेले गए नाटकों की समीक्षाएँ (विजय तेंदुलकर का 'सखाराम बाइंडर' आदि) |
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25.04.01 |
(टिप्पणी) नारी मुक्ति में सवाल पुरुष मुक्ति का भी है |
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अप्रैल '01 |
अश्लीलता के सवाल पर |
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सितंबर 2000 |
अध्यापकों की समस्याएँ भी समझें |
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न्यूज़-लॉंड्री-हिन्दी (वेब) |
जून 2020 |
अश्वेत – प्रचलन या नस्लवाद, जंग तो खुद ही एक मसअला है |
जुलाई 2020 |
बेरहमी जो दिखती नहीं |
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नई दुनिया |
27 दिसंबर 1992 |
मेरी माँ का चेहरा गोर्की से मिलता है (कुमार विकल पर) |
नया पथ |
2017 |
सतह से उठते सवाल: ‘सतह से उठता आदमी' का पुनर्पाठ |
2015 |
भीष्म साहनी- मेरे प्रिय कथाकार |
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अप्रैल-सितंबर 2014 |
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो |
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पंजाब यूनि. कैंपस रिपोर्टर |
1996 |
लाल बुझक्कड़ फिर बोले (केऑस थीओरी) |
पंजाबी ट्रिब्यून (पंजाबी) |
14.06.98 |
ਆਸ ਦਿਸ ਨੂੰ ਜਿਉਂਦੀ ਰੱਖ ਕੇ ਅਸੀਂ ਜਿਉਣਾ ਹੈ (ਜੰਗ ਦੇ ਵਿਰੋਧ 'ਚ) |
10.05.98 |
ਲੋਕ ਪੱਖੀ ਅਖਵਾਉਂਦੀਆਂ ਤਾਕਤਾਂ ਨੂੰ ਇਕੱਠੀਆਂ ਹੋਣ ਦੀ ਲੋੜ |
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19.04.98 |
ਕਾਲਜ ਅਤੇ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਅਧਿਆਪਕਾਂ ਦੇ ਮੁਲਾਂਕਣ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ |
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29.03.98 |
ਅੱਜ ਦੇ ਹਨੇਰੇ ਵਿਚੋਂ ਹੀ ਉਦੈ ਹੋਵੇਗਾ ਭਵਿੱਖ ਦਾ ਸਵੇਰਾ |
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पल प्रतिपल |
जनवरी-मार्च 1991 |
पुस्तक समीक्षा: नवीन सागर का कहानी संग्रह 'उसका स्कूल' |
पुस्तक समीक्षा: परेश का कहानी संग्रह 'वह जो अतीत है' |
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जनवरी-जून 1995 |
पुस्तक समीक्षा: ललित कार्तिकेय का कहानी संग्रह 'तलछट का कोरस' |
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पुस्तक समीक्षा: विजय बहादुर सिंह, शलभ श्रीराम सिंह और नरेंद्र जैन के कविता संग्रह 'प़थ्वी का प्रेमगीत' |
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प्रभात खबर |
दीवाली विशेषांक 2015 |
सूचना क्रांति से खेती में क्रांति |
प्रयाग पथ |
अक्तूबर 2019 |
राजेंद्र कुमार की कविताओं पर लेख |
पश्यंती |
1999 |
राष्ट्रभाषा बनाम राजभाषा |
फिलहाल |
नवंबर 2015 |
बिहार के बहाने गुहार |
जुलाई 2016 |
तर्कशीलता, भावनात्मकता और प्रतिरोध |
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बनास जन |
2016-17 |
‘मैं हिन्दू हूँ’ (असगर वजाहत) पढ़ते हुए |
2015: |
वाङ्चू - भीष्म साहनी को आज कैसे पढ़ें |
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2014: |
कविताओं के साथ आत्म-कथ्य |
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बी बी सी डॉट कॉम |
(पंजाबी) 2019 |
कैसे सिद्ध करूँ कि मेरी माँ भारतीय है |
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2014 |
साल 2014 के उल्लेखनीय कविता संग्रह |
बुकपॉकेट डॉट नेट |
जुलाई 2015 |
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युवसत्ता
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जनवरी 1998 |
लाल बुझक्कड़ फिर बोले (केऑस थीओरी) |
जनवरी 1998 |
भारत दशा 1998 |
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अक्तूबर 1997 |
अणुओं की दुनिया में हस्तक्षेप |
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नवंबर 1997 |
लेज़र कथा |
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दिसंबर 1997 |
मनस्थिति का विज्ञान |
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रविवार डॉट कॉम |
अक्तूबर 2015 |
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नवंबर 2015 |
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28.12.14 |
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09.06.14: |
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07.04.14 |
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राष्ट्रीय सहारा |
17 जुलाई 2019 |
चंद्रयान-II |
9 नवंबर 2016 |
संजीदा होना होगा |
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सितंबर 2016 |
उच्च शिक्षा में एक और छलावा |
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सितंबर 2015 |
हिंदी में विज्ञान लेखन की समस्याएँ |
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अगस्त 2015 |
शिक्षा, सांप्रदायिकता और लोकतंत्र |
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लोकमत समाचार |
27 दिसंबर1992 |
(लोकरंग): एक-दूसरे तक पहुँचने का पुल है कुमार विकल की कविता |
वागर्थ |
मई 1997 |
पुस्तक समीक्षा: प्रताप राव कदम का कविता संग्रह 'एक तीली बची रहेगी' |
फरवरी 1997 |
पुस्तक समीक्षा: मृदुला गर्ग का उपन्यास 'कठगुलाब |
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पुस्तक समीक्षा: कमल कुमार का कहानी संग्रह 'क्रमशः' |
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विपाशा |
मई जून 2001 |
कुमार विकल और उनकी कविता |
सत्य हिन्दी (वेब) |
अगस्त 2020 |
राष्ट्रीय शिक्षा नीति: बुनियादी बदलाव या नई जुमलेबाज़ी! |
सदानीरा |
अक्तूबर 2014 |
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संडे ऑब्ज़र्वर |
5 मई 1991 |
एलिसन का सर्वव्यापी अदृश्य व्यक्ति |
सबलोग |
अक्तूबर 2017 |
गाँधी और हमारा समय |
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अप्रैल 2016 |
राष्ट्र, देश आदि और भारत के लोग |
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जून 2014 |
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समकालीन जनमत
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2021 (वेब पोर्टल) |
विज्ञान, टेक्नोलोजी और समाज -1,2,3,4 |
दिसंबर 2018 |
प्राथमिक शिक्षा का कॉरपोरेटीकरण |
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मई 2018 |
मार्क्सवाद और विज्ञान |
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मार्च2018 |
स्टीफेन हॉकिंग - विज्ञान का चमकता सितारा जो कभी नहीं बुझेगा |
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मार्च2012 |
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अप्रैल2012 |
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मई 2012 |
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जून 2012 |
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जुलाई2012: |
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अगस्त2012: |
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अक्तूबर2012: |
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नवंबर 2012: |
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15-28 फरवरी 1994 |
(संपादक को पत्र): यौन-संबंध वाम चिंतन के दायरे से बाहर क्यों? |
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समयांतर |
सितंबर 2017 |
शैतान के लंबरदारों, सावधान |
जुलाई 2016 |
तर्कशीलता, भावनात्मकता और प्रतिरोध |
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जुलाई 2016 |
ब्रिक्सिट से क्या सीखें |
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मार्च 2016 |
जनता का विज्ञानी रिचर्ड लेविन्स |
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जुलाई 2015 |
गफलत में सुकून का उल्लास (आशीष लाहिड़ी के लेख का अनुवाद) |
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जून 2014 |
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मार्च 2014 |
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जनवरी 2014 |
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मार्च 2013 |
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अगस्त 2012 |
यह ज़मीं है तुम्हारी, यह ज़मीं है हमारी |
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संदर्भ |
मई-जून 2024 |
विज्ञान की सामान्य समझ और मानविकी विषयों में विश्व-दृष्टि का सवाल |
मार्च-अप्रैल 2023 |
कुदरत के सच और समाज (व्याख्यान)-2 |
|
जनवरी-फरवरी 2023 |
कुदरत के सच और समाज (व्याख्यान)-1 |
|
|
2017 (?) |
ज्ञान की ज़मीन और ज़मीनी ज्ञान-2 |
|
2017 (?) |
ज्ञान की ज़मीन और ज़मीनी ज्ञान-1 |
साक्षात्कार |
मई 1997 |
पुस्तक समीक्षा: अब्दुल बिस्मिल्लाह का उपन्यास 'मुखड़ा क्या देखे' |
साखी |
जुलाई 2012 |
थोड़ा सा चाँद, थोड़ी सी गप्प (शमशेर बहादुर सिंह पर) |
साम्य |
2012 |
'अगड़म बगड़म' की भूमिका |
स्रोत |
फरवरी 2023 |
चैट-जीपीटी - इंसानी अजूबा या धोखेबाजों के हाथ नया औजार? |
अक्तूबर 2023 |
कृत्रिम-बुद्धि और चेतना |
|
दिसंबर 2022 |
आर्टीफिसियल इंटेलिजेंस -1, -2, -3, -4 |
|
सामयिक वार्ता |
अगस्त 2020 |
स्वाति दी की याद में |
मार्च 2018 |
फासीवाद का भाषाई पहलू |
|
दिसंबर 2016 (2017) |
मार्च फॉर साइंस |
|
नवंबर-दिसंबर 2014 |
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शुक्रवार |
अप्रैल 2014 |
नफ़रत करके क्या मिलेगा (मूल: हमें ही सही-ग़लत तय करना है) |
संकलित : संस्मरण |
2011 |
हरदा प्रसंग (ज्ञानेश चौबे संपादित 'हमारी यादें: हमारा हरदा' में) |
संकलित : लेख |
2022 |
मुक्तिबोध के लेखन में वैज्ञानिक सोच (सन्तोष चतुर्वेदी संपादित 'मुक्तिबोध : विमर्श और पुन:पाठ) |
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2019 |
(राजेंद्र कुमार पर संपादित पुस्तक में) |
2016 |
कुछ कविता-टविता लिख दी तो (प्रेमशंकर संपादित 'रहूँगा भीतर नमी की तरह' में) |
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2016 |
नफ़रत की संस्कृति का विरोध ज़िंदगी की पहचान है (मृत्युंजय संपादित 'प्रतिरोध' में) |
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2015 |
भारतीय भाषाओं का भविष्य (आत्मा राम शर्मा संपादित 'आधुनिक समय में हिंदी की चुनौतियाँ' में) |